जीवोत्पत्ति का विज्ञान
जिस मिथक संपदा को साहित्य में संदिग्ध और विज्ञान में लगभग बहिष्कृत माना जाता रहा है, उसे ही चित्रकला, संगीत और नृत्य में प्रगतिशील स्वरूप में स्वीकार लिया गया है। उस पर प्रश्न खड़े नहीं किए गए। परंतु जब कभी भी मिथकों में विज्ञान खोजने की बात उठती है तो वैज्ञानिक दंभ उसे पढ़े व समझे बिना ही खारिज करने की उद्दण्डता बरतता है। इस समय ठेठ पौराणिक चरित्रों को लेकर विपुल साहित्य रचा जा रहा है। इसमें से ज्यादातर अंग्रेजी से अनूदित होकर हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में आकर चर्चित भी हो रहा है। तुलसीदास ने ‘रामचरित मानस’ में देवत्व की धरणा को देवता माना। किंतु जयशंकर प्रसाद ने ‘कामायनी’ में देवों की अलौकिक धरणा को तोड़ते हुए इन्हें ऐतिहासिक पात्र माना और देवासुर संग्राम व प्रलय जैसी घटनाओं को वास्तविक माना। इनके काव्यों में प्रकृति-चित्रण और आध्यात्मिक-दार्शनिकता के जटिल भाव भी प्रछन्न हैं। धर्मवीर भारती, मैथिलीशरण गुप्त, निराला, दिनकर, नरेश मेहता, दुष्यंत कुमार और नागार्जुन जैसे राष्ट्रवादी कवि पुराकथाओं और मिथकों के माध्यम से समकालीन विषयों को अभिव्यक्त करने के प्रयास के साथ अपनी प्राचीन जातीय स्मृतियों के परिप्रेक्ष्य में रचनात्मक उत्तरदायित्व बोध् के प्रति सचेत दिखते हैं। युगीन यथार्थ और सत्यों को आमजन तक पहुंचाने के लिए वे देवता को देवत्व के अकल्पनीय आश्चर्यों से मुक्त रखते हैं। उपन्यास व नाटक में यह काम आचार्य चतुरसेन, रामकुमार भ्रमर, नरेंद्र कोहली, भीष्म साहनी, मदनमोहन शर्मा ‘शाही’, मनु शर्मा और मृदुला सिन्हा ने अपनी कालजयी रचनाओं में किया है। कन्हैयालालमाणिकलाल मुंशी, महर्षि अरविंद, शिवाजी सामंत, विष्णु सखाराम खांडेकर और प्रतिभा राय ने यही काम अपनी-अपनी मातृभाषाओं में किया। इन रचनाओं में समाज, धर्म, नीति-अनीति और संघर्ष के अनेक पहलुओं का कमोबेश यथार्थ चित्राण है।
इधर अंग्रेजी के माध्यम से तकनीकी क्षेत्र से आए लेखक देवदत्त पटनायक, आमिष त्रिपाठी एवं आनंद नीलकंठ ने मिथकों के रहस्यों को अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर सृजन किया। इन्होंने पुराणकालीन चित्रों, मूर्तियों और नृत्यों के भी यथार्थपरक भेदों का सरलीकरण किया। इतना विपुल अन्वेषणात्मक लेखन होने के बावजूद मिथकों के विज्ञान-सम्मत रहस्य को जानने और उन्हें आध्ुनिक वैज्ञानिक खोजों के समतुल्य परखने की कोशिशें नहीं हुईं। हुईं भी तो उन पर व्यापक दृष्टि नहीं डाली गई। जबकि हमारे मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह और वामन विज्ञान-सम्मत ऐसे जैविक अवतार हैं, जो तमाम वैज्ञानिक अनुसंधानों और अवधारणाओं की कसौटी पर खरे उतरते हैं। इनमें सृष्टि के आरंभिक विकास-क्रम से लेकर ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने की अनंत जिज्ञासाएं हैं। प्राचीन राजवंशों की ऐतिहासिकता के प्रमाण और चहुँमुखी सामाजिक विकास के व्यावहारिक मानदण्ड भी अंतर्निहित हैं। इनमें जहाँ ब्राह्मणेतर, शूद्र और संस्कारहीन हिंदू अथवा वर्णसंकर जातियों व लोगों के बीच समानता का अध्किार-बोध व वैवाहिक संबंधों का गुणगान है, वहीं अलौकिक शक्तियों को प्राप्त देवताओं की भी अनैतिकता व क्षुद्रताएँ हैं। शायद इसीलिए जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि ‘महाभारत महान चरित्रों की क्षुद्रताओं की भी कथा है।’ पिफर भी हमारा यही वह प्रेरक साहित्य है, जो भौगोलिक और राष्ट्रीय संदर्भों में हमारे अवचेतन में बैठे अदृश्य शक्तिपुंजों को जागृत कर सांस्कृतिक चेतना का बोध कराता है। इस लिहाज से इसे वैज्ञानिक संदर्भ में जानना-समझना जरूरी है। आत्मकथात्मक उपन्यास ‘दशावतार’ इस दृष्टि से एक अद्भुत व अद्वितीय कृति है।
Bestseller, Novel
DASHAVATAAR ( दशावतार: विष्णु के दशावतारों पर विज्ञान-सम्मत आत्मकथात्मक उपन्यास) Paperback
Original price was: ₹450.00.₹400.00Current price is: ₹400.00.
by Pramod Bhargava ( प्रमोद भार्गव )
| Weight | 0.750 kg |
|---|---|
| Dimensions | 24 × 14 × 3 cm |






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