प्रस्तुत पुस्तक का आरंभ इस जिज्ञासा के साथ होता है कि चीन अगर प्राचीन काल में(और एक लंबे समय तक आधुनिक काल में भी) विश्व के अग्रणी देशों में गिना जाता था तो फिर आगे चलकर वह पिछड़ेपन का शिकार क्यों हुआ। पुस्तक के लेखक द्वारा दिए हुए तथ्यों के अनुसार विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में चीन का भाग 1820 में अगर एक-तिहाई था तो आगे चलकर यही मात्रा 5 प्रतिशत रह गया। लेखक के अनुसार इसका कारण चीनी अर्थव्यवस्था के विकास का वह विशेष ढर्रा था जिसमें आर्थिक जगत संबंधी निर्णय भी राजनीतिक सोच के आधर पर लिए जाते थे। नतीजा यह हुआ कि, विशेष रूप से चीनी लोक गणराज्य की स्थापना के बाद, देश में ऐेसे उद्योगों और अन्य उद्यमों का विकास हुआ जो सापेक्ष लाभ के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते थे। यह पुस्तक यह भी दिखती है कि 1978 में चीन में आर्थिक सुधरों के आरंभ के बाद स्थिति में कैसा नाटकीय परिवर्तन आया, यहाँ तक कि 1981 से 2011 तक के तीस बरसों में चीन में आर्थिक संवृद्धि की औसत दर 10 प्रतिशत वार्षिक के आसपास रही। प्रस्तुत पुस्तक का महत्व इसी में निहित है कि इसमें चीन के आर्थिक सुधरों का एक प्रामाणिक विवरण एक ऐसे विद्वान ने प्रस्तुत किया है जो इस प्रक्रिया से गहराई से जुड़ा हुआ रहा है।
CHIN KI AARTHIK VYAVASTHA: EK PARICHAY (चीन की आर्थिक व्यवस्था: एक परिचय)Hardcover
Original price was: ₹900.00.₹810.00Current price is: ₹810.00.
JUSTIN YIFU LIN (जस्टिन ईफ़ू लिन)
नव-संरचनावादी अर्थशास्त्र के प्रवर्तकों में गिने जाने वाले जस्टिन ईफू लिन विश्व बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री और वरिष्ठ उपाध्यक्ष नियुक्त किए जाने से पहले चीन के अनेक शिक्षा संस्थानों में अध्यापन कर चुके हैं। वे नव-संरचनावादी अर्थशास्त्र संस्थान में प्रोफेसर और डीन रह चुके हैं और पेइचिङ विश्वविद्यालय से भी जुड़े हुए थे। उनका जन्म थाएवान में अक्तूबर 1952 में हुआ लेकिन उनकी अध्किांश शिक्षा-दीक्षा मुख्यभूमि चीन में हुई जहाँ उनका परिवार आकर बसा। उन्होंने पेइचिङ विश्वविद्यालय से 1982 में एम-ए की डिग्री पाने के बाद शिकागो विश्वविद्यालय से नोबेल पुरस्कार विजेता थियोडोरशुल्ज के मार्गदर्शन में पीएच-डी की डिग्री प्राप्त की। आगे चलकर वे चीन में स्टेट कौंसिलर भी बनाए गए। चीन के आर्थिक सुधरों से जुड़े श्री जस्टिन अर्थशास्त्र संबंधी बहुत से लेखें के अलावा अनेक पुस्तकों के रचयिता हैं। इनमें प्रस्तुत पुस्तक Demystifying the Chinese Economy (2011) के अलावाThe Quest for Prosperity (2012)] New Structural Economics (2012) और दो अन्य विद्वानों के साथ मिलकर लिखी गई The China Miracle (2003) भी शामिल हैं।






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